डा. कृष्णराज सर्वहारी
(कृष्णराज सर्वहारी असारके डोसर अठ्वार नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालयसे ‘थारु संस्कृतिमा कृष्णचरित्र परम्पराको अध्ययन’ विसयमे विद्यावारिधि (पिएचडि) कर्ले बटाँ । उहे सेरोफेरोमे उहाँसे करल बाटचिट)
१) विद्यावारिधि प्राप्त कर्लक्म बधाई बा । विद्यावारिधि प्राप्त हुइल पाछ अप्नह कसिन महसुस हुइटि बा ?
विद्यावारिधि मिलल् पाछे महि लावा मेरिक कौनो खासे अनुभुटि नै हो । ८ बर्सक् भरवा बिसाइ पैलकमे हलुक महसुुस हुइल बा । बधाइ खाइट खाइट अघा रख्लुँ । यि उट्टर डेहटसम बधाइले पेट भरट कलेसे कलवा बेरि खाइ नै पर्ना अवस्ठा बा ।
२) यिहासम पुगम् कना सोच्ल रलहि कि नाही ?
हिन्दी कवि पास कहले बटाँ, सब्से खटरनाक होटा है, हमारे सपनोंका मर जाना । उहेसे जे सपना डेखक् छोरल, उ मुवल बराबर हो । यिहासम आपन पहइ पुगैम कहिके छोटिअसे सप्ना डेख्ले रहुँ, सोच्ले रहुँ । जौन आज पुरा हुइल बा । महि अभिन फेन याड बा, ९ कच्छम् पह्रेबेर विड्वान लोगनके महावानि अपन डायरिमे सारेबेर मैं अपन फेन महाबानि बनैले रहुँ । ओ,ओकर आगे डा. ठपके अपन नाउँ लिख्ले रहुँ । उ डेख्के मोर बर्का डाडु ऋषिराज चौधरी बहुट डिन खिझ्वइले रहिट । आज उ खिझ्वाइ यठार्ठमे परिनट हुइल बा ।
३) अप्न यिहासम पुग्ना जौन अवसर पैलि याकर श्रेय किहिन किहिन डेठि ?
यि लिस्ट बनैलेसे बहुट लम्मा हुइ सेकठ । फिर भि कुछ नाउँ सम्झहि परि । जस्टे कि सल्यानके मोर मैगर संघरिया पूर्ण भण्डारी ‘पंकज’ जिहिसे हम्रे संगे पिएचडि ओरवइलि, उहाँ गँरखोड्डा नै लगैटा कलेसे मैं पिएचडि ज्वाइन कर्बे नै कर्टुँ । आब् पिएचडि नै करम कहिके ढिला डेहलमे मोर शोध निर्देशक गुरु प्राडा चूडामणि बन्धु टुहि अपन समाजके लग फेन जसिक फे यि कोर्स करहि परि कहिके डोसर गँरखोड्डा लगैलकमे उहाँ २ जन्हन प्रटि विसेस आभारि बटुँ । मोर सहनिर्देशक डा गोविन्द आचार्य, डा गणेशप्रसाद घिमिरेप्रटि फेन आभारि बटुँ ।
मोर पिएचडिके कार्यछेट्र दाङके राजपुर गाउँ रहे । उहाँक् गोमादेवी चौधरीक् गाइल अस्टिम्कि गिटके विस्लेसन हो मोर पिएचडि । उहाँ महि समय नै डेटि कलेसे पिएचडि सम्भव नै रहे । ओस्टक सामग्रि संकलनके लग सघैलक माधव चौधरी, सुशील चौधरी, छविलाल कोपिला, अशोक थारु लगायट संघरियन नै सघैटा कलेसे यि लिख्नौटि अच्कच्रे रहट । ओ, कहिहि पर्ना मोर सुखडुखमे साठ डेना मोर गोसिन्या जे महि पह्रक लग बाटाबरन बनैलि, टिनु छाइन्के जे टायप कैके मोर पिएचडिहे आगे बह्रैलाँ । यि सक्हुन मोर पिएचडि कैनाके स्रेय जाइठ ।
डोसर मजा कामके लाग इगो ढैना चाहि कना मोर मान्यटा हो । जब कौनो समय संग्गे रिसर्चके काम कर्लक गोपाल दहित पिएचडि ज्वाइन कर्ला । महि लागल दहित पिएचडि करे सेक्ठाँ कलेसे मै का जे नै ? कना इगोले फेन मोर पिएचडिके याट्रा आगे बह्रल रहे । ओहेसे उहाँहे फेन मोर पिएचडि कैनाके स्रेय जाइठ ।
५) खास कैख हमार थारु समुदायक भैया बाबुहुक्र एसईई पास कैक बल्लबल्ल क्याम्पस पह्र जैठ तर बिचमा छोर डेठ । आपन पह्राइह निरन्तरता नि डेना कारण का हुइ ना?
किहु परिस्ठटिले बिचेम पह्राइ छोरना बाढ्याटा आ सेकठ । मने खास कैके कौनो काम बिचेम छोरना कलक योजनाके अभाव हो कना महि लागठ । बहुट कम अभिभावक हुइहि, जे अपन सन्टान क्याम्पस ना पह्रे कना सोंच रलक । मोर लर्कापर्का आगे बह्रिट कना जौन फेन अभिभावक्के चाहना रहठ । मने हालि कमैम् टे मजा मोबाइल खेलैम्, जा मन लागि टा खैम्, जहाँ मन लागि टहाँ घुमम् कना सामान्य सोंचले फेन युवालोग पह्राइ ढिला डेठाँ । मन्जुरि चलजैठाँ ।
बिचेम पह्राइ छोरना भैयाबाबुन मै का कहक चहठुँ कलेसे अपनेक हाँठेम सिप बा कलेसे मजा जिन्गि जिए सेक्ठि । जौन फेन सिप सिखक् लग पह्राइ चाहठ । काम कर्टि फे पह्रे सेक्जाइठ । ओहेसे मै टे कामले फुर्सड नै पैठुँ कना बहाना ना बनाइ, जट्रा सेकटि, पह्रि ।
६) अप्न विद्यावारिधि प्राप्त कै सेक्ल बाटि । बास्तबम पह्राइ कलक् कसिन हो जसिन लागठ ?
मैं पह्राइहे एकठो टपस्या मन्ठुँ । सब्के टपस्या पुरा नै हो फेन सेकठ । छोटेम जब कौनो बिसयके बारेम घोक्टि, याड करट करट मिच्छै लाग जाए टे मनेम खयाल आए, यि पह्राइ कना चिज कहिया ओराइ । मने यि पहिलक् खयाल सोंचेबेर अब्बे हाँसि लागठ । विद्यावारिधि औपचारिक पह्राइके अन्टिम बिन्डु हो । मने विद्यावारिधिके बाड जिम्मेवारि झन बह्रल महसुुस हुइल बा । लावा लावा विसयमे अढ्ययन अनुसन्ढानके खाका बन्टि बा ।
७) अप्न अस्टिमकि बिसयम विद्यावारिधि कर्लि । यि बिसयम नम्मा समयसम अनुसन्धान करबेर अस्टिम्किक् इतिहास का पैलि?
अस्टिम्किक् इटिहास ड्वापर युगसे जोरल हस लागठ । कान्हा भारतके बज्जि गणतन्त्रमे बह्रलाँ, पौह्रलाँ । बज्जि गणतन्त्रमे बोल्जैना बहुट सब्ड अस्टिम्किक् गिटमे पा जाइठ । थारु समुडायमे कान्हा असिन पात्र हुइट, जेकर महिमा अस्टिम्किक् गिट गाके, अस्टिम्किम् चित्र बनाके पुजा कैके, डस्यम सखिया नाचेम गिट गैटि नाचके मना जाइठ । कान्हाबाहेक गिट गाके, चित्र बनाके, नाचके कौनो ऐटिहासिक पात्रहे थारु नैसम्झठाँ । जब मनै भासाके अभावमे एक डोसरसे बोलके अपन भावना साटे नै सेकिट, टब चित्रले अपन बाट बुझाइट । महि लागठ, अस्टिम्किसे पहिले फेन थारुलोग चित्र बनाइट, नै टे सिरिस्टिके बर्नन् हमार चित्रमे कसिक आइट ? संसारमे उ जाट पुरान मानजाइठ, जेकर लोकसाहित्यमे सिरिस्टिके खिस्सा मिलठ् । अस्टिम्किक् गिट लगायट गुर्वावक् जल्मौटिमे फेन सिरिस्टिके खिस्सा रहलओर्से थारु संसारके पुरान आडिवासि हुइट कना प्रमानिट करठ ।
८) पाछक् समयम अस्टिम्कि मनैना चलन फे हेरैटि जाइटा । याकर महट्व बह्राइक लाग ओ यि अस्टिम्कि मनैना चलन ह निरन्तरता डिहक लाग का कर पर्ना डेख्ठि ?
अब्बे नेपालमे किल नाहिं, संसार भर पहिचानके खोजि हुइटि बा । ओहेसे खास कैके पस्चिमा थारुलोग यडि अपन पहिचान बँचैना हो कलेसे अस्टिम्कि मनैना चलनहे निरन्टरटा डेना जरुरि बा । डिडिबाबुन् अग्रासन डेहे जैना मजा चलन यम्ने बा । इहिसे हमार गिटबाँस, पेन्टिंग, नाच बँचे सेकठ् । अस्टिम्किहे महोट्सवके रुपमे मनाइपर्ना सोंच बनाइ परल । हमार थारु जनप्रटिनिढिलोग, बरघर महटाँवालोग पहिचान बँचैना सोंच नाने परल । जस्टे मिथिला कला नेपालमे किल नाहिं, अब्बे संसार भर लोकप्रिय हुइटि बा । ओस्हक अस्टिम्कि चित्रकलाहे फेन लोकप्रिय बनैना जरुरि बा ।
९) अन्टम कुछु कह पर्ना बा कि?
बुह्राइल सुग्गा कठेक पह्रि ?कना कहकुट हटाइ । पह्रके ओरागैल कब्बु ना सोंचि । आपन ग्यान बाँटि । अपन व्यक्टिगट उन्नटिके अलावा समाजके उन्नटिक् लग फेन कुछ सोंच बनाइ ।
प्रस्टुटि : सन्तोष दहित
साभार : नयाँ युगबोध