४ बैशाख २०८१, मंगलवार April 16, 2024

डस्या, डेवारिम ढुर झर्नाः थारुन्के जीवन्त संस्कृति

१ मंसिर २०७८, बुधबार
डस्या, डेवारिम ढुर झर्नाः थारुन्के जीवन्त संस्कृति

स्थानः कैलाली, घोडाघोडी नगरपालिका–१० लठैया (घुरिहान पुरुवा)

समयः सन्झक् ६ बजे

यी बरस (०७८) के डसैं । ढिक्रहुवक् डोसर दिन । पिट्रहुवा, पिट्टर अस्रैना रोज ओ ढुर झरना दिन । मन्द्रक भरटार (धुन), घेल्टुङ… घेल्टुङ… घेल्टुङ… बोले लागल । हमार छुट्कि काकिन घर हमार संझला काका मुरिम पोक्टा परले ओ कन्ढामे कोड्रा लेले । सँगे सर्राहान मंझला काका लेहेंगा घल्ले, मुरिम दुपत्ता ढरले ओ कन्ढामे हेलका लेले निकरलैं । ठिक टाकपर खंझला काका अइलैं ओ पुछे लग्नै– ‘कहाँ जाइटि हो साह्रु ?’ जवाफ आइल– ‘मच्छी मारे ।’ एक्के घरिम एक जाने मेरुवा बाँढेहस ओ एक जाने मच्छी ओह्डेहस करे लग्लैं । मच्छी मारे लग्लैं कि, लेहंगा घालल काकक् अंग्रीमे सिड्डिया काट डेलिन हुन् । टब्बहि गीत सुरु हुइगिल–

हेल्का लेलि, डिलिया लेलि हाँ, (गैलि मछर मार हो)–२
अंगुरिमे सिड्डिया काटल टिकुली सम्हाँर हो ।

अइसिके हम्रे यी डस्यामे ‘दिन नचुवा’ नाच करटि अपन टोलवासी मिलके ढुर झरना सुरु करले रहि ।

इहिसे आघे हमार भल्मन्सा भौजीक् (ईन्द्रादेवी चौधरी) घरसे ढुर झरना सुरु करले रहि । पिट्टर अस्रैहिबेर किसनुवाहुक्रे अपन पुरुवामे ढुर झरना निर्नय करसेकले रहि । ढुर झारेबेर अपन पुरानी लोकबाजा मन्द्रा ओ मञ्जिरा बोलाके नच्ना बाट हुइल रहे । आघेपाछे ‘डिजे’ बाजामे टे नच्टी रठि । डसैंमे काहे अपन लोकबाजामे नैनच्ना टे कहिके सबजे सहमत हुइल रहि । नच्ना टे नच्ना, मने टोलमे मन्द्रा बजाइ कोइ नैजन्ना, ना टे टोलमे मन्द्रा रना । का करलि, मन्द्रा बजाइक लाग गाउँमन्से मन्डरिया बुडुहे मन्खुन्वइलि ओ मन्द्रा फेन गाउँमनसे जुगार करलि । मञ्जिरा भर मै अपन घरसे लैअन्नु । उ फेन हमार मंझला बुडुक दशकौं पहिले राना गाउँ कमाइबेर खरिदके नाच करेबेरिक मञ्जिरा । काका–बरापुन्से पटा लगैनु टे उ मञ्जिरा लगभग विक्रम् सम्वत् १९९६ साल ओर खरिदले रहे हुन्, बुडु । हमार बुडुनके जम्मा ५ भाइ मनसे हमार बाबनके छुट्कि बुडुक लर्का ।
बाजक् व्यवस्था हुइलबाड भल्मन्सा भौजीक् घर मन्डरिया बुडु ओ काका सम्ह्रौटि गीत सुरु करलैं–

पूर्वेमै सोम्रहुँ सूर्ज देउट्वा, पस्छिमे देवीजीके थान,
उत्तरमे सोम्रहुँ ईस्रु महादेव, डख्खिने वीर हनुमान ।

उप्रक गीतसे नाच टे सुरु करलि । नाचेबेर मञ्जिरा टे मै लैगिनु । मने बजाइ के ? हम्रे कुछलोग भरखरिक लर्का, मञ्जिरक् टार नैबुझना । बजैना कैसिक ? कुछ बुजुर्ग रहैं, छाँकीबुडि लगैले, बजा नैपउइया । फेन, मन्डरिया बुडुहे महिन सिखा डेउ कनु टे ठोरठार सिखा डेलँ । कबु नै बजाइल बाजा, मञ्जिरा । ओम्हे बरवार । ५/७ घर नचाइट भरिम टे अंग्री सोँस्या गैल । फोक्टा परल हस । बलटल मन्द्रक टारमे मञ्जिरक् टार मिलाइहस करु कि फेन मन्द्रक खोट बडल जाए । टबफेन जैसिक टैसिक बजैटि रहुँ ।

पिट्टर अस्राइ गैल टोलवासीहुक्रे ।

जब छुट्कि सर्राहान बुडुन घर पुग्लि । बुडु मञ्जिरा डेख्के बरा चौकस हुइलैं । बजाइ खोज्लैं । डसैं ढेर लागल रहिन काहुन सुरुमे सम्हाँर नैपैलैं । डोसर घर पुग्लि टबसम सम्हँर गैलैं । जब बुडु मञ्जिरा मन्द्रक टारमे बजाइ भिरलैं टे, मोर बजाइल मञ्जिरक बोल टे पुरापुर ‘फ्लप’ हुइगिल । मोर हाँठ जत्रा बजाए, ओकर दुई हिस ढेर अर्थात् मै जोन समयमे जैचो मञ्जिरा लराइ सेकुँ बुडु ओत्रे समयमे दुईचो मञ्जिरा खन्मन्वा डिंट् । बुडुक बजाइल मञ्जिरक् टारमे नचुनियन और चम्पन होके नाचे लग्लैं । मै ठपरि मारे लग्नु ‘साइड’ लागके । सर्राहान बुडुक मञ्जिरक टार ओ मन्डरिया बुडुक मन्द्रक धुनमे गीत गाइ लग्लैं, मोह्रियाहुक्रे–

बैगम टुरे गैलि, एहो राम ओहे बैगम सगिया,
गरल अंगुरी बीचे कट्वा, बेदना भित्तर सलेऽ ।

ओहे संगे बिहान हुइबेर गैना गीत फेन–

लवन्डी– रातिके टे कहिलो छैलाऽ, सेन्दुरा लानि डेहबु हो,
भोरेहुवटा रे, बिसरि गैलो मोरे बटिया,
(नहि पटिअइबु छैला, टोहाँर बटिया)–२

लवन्डा– अबहि टे भोरे बाटे, हुइडेउ ओज्रार हो,
जैबु बजरिया, नानिडेम सेन्डुरवा,
(नहि बिस्रैबु छैली, टोहाँर बटिया)–२

अस्टे–अस्टे गीतमे खोब नच्ली ।

ओहोर भरखरिक गुरुवा सिखल भैयनमे मन्द्रक टार सुनके गुरुवा चह्र गैलिन । सम्हाँरे नैसेक्लैं काहुन, कुड्गे लग्लैं । घरेक लोग मन्डरिया बुडुहे ट्रासन ठोके कलैं, टाकि देउता चह्रल भैयाभर घरे आइँट् अपन देउता सम्हाँरिट् । मने, देउता कहाँ मन्ही । जट्रे ट्रासन टोङ्गनक–झोङ्गनक… टोङ्गनक–झोङ्गनक… करे ओट्रे गुरुवा खेलुइया भैयन् सब गोटियार घर छिरिइँट् । गोटियारिनक् सब घर छिरट छिरट टे बेर हो गैल । पाछे गुरुवा डाडु नच्करुवनहे पठा डेलैं । देउता चह्रल भैयन्हे मै सम्हाँर लेम कहिके । टब काहुन छुट्टि पैलि, वहाँसे ।

जब बर्का सर्राहान घर पुग्लि टे, बर्का सर्राहन बुडु गीत गैनामे सहयोग करलैं । ओहे–ओहे गीतमे नाचके मिच्छा गिल रहि । आब लावा फरक गीतके खोजीमे फेन रहि हम्रे । सन् १९४७ से पहिले अर्थात् भारत अंग्रेज शासनसे स्वतन्त्र हुइनासे आघेक घटना कालके गीत सुनैलैं उहाँ । हमारहस लावा पुस्ताके लोग नैसुनल गीत । कम्तीमे मै भर नैसुन्ले रहुँ उ गीत । जोन गीत सर्राहान बुडु सुनैलैं । उ बेलाके थारु समुदाय अंग्रेजहुकनसंग फेन प्यार–मोहब्बतसँगे अन्य व्यहारिक कार्यके बखान सुनैलैं, उहाँ । उहाँ गीतमे परोस्लैं–

उट्टरेसे आवे साटे सखिया,
डख्खिनेसे आवे अंग्रेज, चोलियामे रंग छिर्काइ छैला…

नाचेबेर दुई जाने काकनके पैसा बिछा डेलैं ओ नचुनिया हे लुट्ना आग्रह करलैं । नचुनिया काकी १८ वर्ष पाछे अइसिक नाचल ओरसे पैसा लुटे नैसेक्ना बटैलि । लुटेक लाग ढरल पैसा बिना लुटैले डेलै काकाहुक्रे । उहाँहुकनहे पटा रहिन कि आझकल अभ्यासके कमिके कारन पैसा लुटे सेक्ना नचुनियन्के कमि बा । मन्डरिया बुडु फेन ढेर सालबाड अइसिन नाच करे पाइलमे हुकान मन फेन बर चौकस रहिन । यहोर गीत गउइया काकनके अइसिक गीत गाइल ढेर बरस हुइल ओरसे गीत गैनामे समस्या हुइल ओरसे सर्राहान बुडुहे गीतमे सहयोग कैना अर्जी करलैं ।

ढुर झारेबेर मञ्जिरा बजैटि लेखक ।

सबसे पाछे पाला खंझला काकक् घर ढुर झरना रहे । यहाँ अन्तिम घर हो कहिके ठोरचे घरिक नाच करना हुइलि । नाचेबेर उप्परके सब गीतमे पालिकपाला नच्ली, सोंग कह्रलि । ओ, अन्त्यमे नाच ओरवाइक लाग बिहान नैहुइलेसे फेन भिन्सह्रिया गीत सुरु हुइल–

उठो अलबेलि रे, बहारी डारो अंगना…

यहोर गीत ओरैटि किल सबजे घरे घरे ओर नामे लग्लैं । सबजे घरे ओर लागल डेख्के मन्डरिया बुडु कलैं– ‘नाच टे सुरु करलो नाचहे बिसर्जन के करि ? नाच हे बीचमे छोरके जाइ नैमिलठ । नाचके समापन करे आउ सबजे ।’ सबजे फेन आइगिलैं ओ नाच ओरवाइबेर गैना गीत गाइ लग्लि–

यहि अंगनुवामे खेलली ओ हँसलि,
नाचे छोरट् मैंया लागे, सक्कु जनहन राम–राम ।

नाच ओरवाके लरट–भट्कट घर पुगट भरिम रातके १० बज गिल रहे । कोइ आघे, कोइ पाछे । कोइ अन्ढारेम, कोइ ओज्रारेम । गिरट, उठट । उ रोज हम्रे ढुर झरना निम्जैलि ।

डोसर बिहान भक्लान फुफा ढेर दिन बाड अइसिन चैनार नाचकोर हेरे पाइलमे मन चौकस हुइल, मने नाच हेरके हउस् पुग्नासे पहिले अपन घरसे नाच करुइयन गैल प्रतिक्रिया डेलैं ।

अन्त्यमे, अपन संस्कृति बचाइक लाग अइसिन मेरिक नाचकोर करना जरुरी बा । अझकल संस्कृति बचाइक लाग कोइ प्रयास करेक खोज्लेसे जन्ना सुन्ना बुजुर्कहुक्रे सहयोग करना फेन जरुरी डेखा परठ । ओस्टेक, युवाहुक्रे फेन अपन कला संस्कृति बचाइक लाग अग्रसर हुइना फेन आवश्यक बा ।

का इ डस्या ओ डेवारिमे अपनेक गाउँ पुरान नाचकोर कैके ढुर झर्लि ? यडि नैझर्लि कलेसे अइना डस्या–डेवारिमे जरुर ढुर झारि । हमार पुर्खनके बँचाइल थारुन्के जीवन्त संस्कृतिहे फेनसे लौसारि । सर्राहान बुडुहस पुर्खन किल कहाँसम मञ्जिरा बजैहि, गीत गैहि ? मोर नन्हे अपने फेन मञ्जिरा खन्मन्वाइ सिखि । थारु गीतमे रहान मिलाइ सिखि । कि कसिन ?

ओ जैटि–जैटिः

इ लेखके लग गीत संकलनमे काका शिवप्रसाद, रामनाथ ओ बरापु दुःखीराम चौधरीसे सहयोग मिलल्, उहाँहुकनप्रति आभारि बटुँ । मने, दैवके लिला इ लेख प्रकाशन कैनासे पहिले काका रामनाथ चौधरी इहे कार्तिक १६ गते जाट्टिसे हमन छोरके चलगैलाँ । इ लेख उहाँप्रति समर्पित करेक चाहटुँ ।

साभार : पहुरा दैनिक